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मध्‍य प्रदेश के मंदिरों में वीआइपी संस्कृति, नेताओं पर कृपा बरसे, आम श्रद्धालु दर्शन को तरसे, प्रतिबंध के बावजूद महाकाल मंदिर के गर्भगृह में जाकर पूजन करते श्रीकांत शिंदे....

  Updated : October 21, 2024 12:00 PM

रामेश्वर नागदा नीमच

  प्रशासनिक

वीआइपी संस्कृति के नाम पर भले ही लाल-पीली बत्ती का चलन कम हो गया हो, मगर मंदिरों में इसका अच्छा-खासा प्रभाव आज भी देखने को मिल जाता है। मंदिरों में वीआइपी दर्शन की व्यवस्था ने धार्मिक और सामाजिक हलकों में बहस को जन्म दिया है।
कई लोग हिंदू धर्म की समावेशी आध्यात्मिक परंपराओं से अलग मानते हैं - वीआइपी दर्शन, एक ऐसी प्रणाली है, जो प्रभावशाली व्यक्तियों और दानदाताओं को भगवान के लिए प्राथमिकता प्रदान करती है जबकि इसे कई लोग हिंदू धर्म की समावेशी आध्यात्मिक परंपराओं से अलग मानते हैं।
गर्भगृह में प्रतिबंध के बावजूद प्रवेश देने का सामने आया - वीआइपी दर्शन का हालिया मामला महाकाल मंदिर के गर्भगृह में प्रतिबंध के बावजूद प्रवेश देने का सामने आया है। इस बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के पुत्र सांसद श्रीकांत शिंदे, उनकी पत्नी व दो अन्य लोगों ने गर्भगृह में प्रवेश कर पूजा-अर्चना की।
महाकाल मंदिर में वीआइपी द्वारा नियम तोड़ने का यह पहला मामला नहीं - गर्भगृह में चारों करीब छह मिनट रहे। महाकाल मंदिर में वीआइपी द्वारा नियम तोड़ने का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी प्रतिबंध के बावजूद कई वीआइपी लोगों ने गर्भगृह में जाकर बाबा महाकाल के दर्शन किए थे।
प्रतिबंध के बावजूद लेकर भक्तों में भी खासी नाराजगी है - आम श्रद्धालुओं का कहना है कि मंदिर के गर्भगृह में सभी का प्रवेश निषेध है तो फिर वीआइपी, नेता और उनके परिवार के लोग गर्भगृह में पहुंचकर पूजा-अर्चना क्यों कर रहे हैं। महाकाल मंदिर में करीब 14 महीने से गर्भगृह में प्रवेश करने पर रोक लगी हुई है।
महाकाल महालोक बनने के बाद से उज्जैन काफी चर्चा में आ गया - ऐसे में सांसद श्रीकांत शिंदे का तीन अन्य लोगों के साथ गर्भगृह में प्रवेश करना बहस का विषय बन गया है। श्री महाकाल महालोक बनने के बाद से उज्जैन काफी चर्चा में आ गया है। इस कारण यहां पर जरा-सी अव्यवस्था भी सुर्खियां बन जाती हैं।
वीआइपी संस्कृति की यह समस्या प्रदेश के पर्यटन स्थलों तक में बनी हुई - वीआइपी संस्कृति की यह समस्या ओंकारेश्वर-ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग, मैहर के शारदा मंदिर, दतिया के पीतांबरा शक्तिपीठ से लेकर प्रदेश के पर्यटन स्थलों तक में बनी हुई है। हर जगह वीआइपी के लिए अलग व्यवस्था देखने को मिल जाती है।
उद्देश्य यह था कि वहां दर्शनार्थी के चढ़ावे से राजकोष समृद्ध होगा - हमारे देश में मंदिरों का निर्माण सातवीं शताब्दी के बाद व्यवस्थित तरीके से शुरू हुआ था। देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग राज्यों में वहां के शासकों ने अपने तरीके से मंदिरों का निर्माण करवाया था। मंदिरों का निर्माण जब राज्य द्वारा किया गया तो उसका उद्देश्य यह था कि वहां दर्शनार्थी के चढ़ावे से राजकोष समृद्ध होगा।
शुरुआत में तो सभी मंदिर आम आदमी के लिए सुगम हुआ करते थे - आजादी के बाद सरकार ने कुछ मंदिरों में ट्रस्ट के माध्यम से व्यवस्था अपने हाथों में ली थी। शुरुआत में तो सभी मंदिर आम आदमी के लिए सुगम हुआ करते थे, लेकिन धीरे-धीरे अब इसमें प्रशासन के लोग अपनी घुसपैठ जमाने लगे।
आगे चलकर यही व्यवस्था वीआइपी दर्शन का आधार बनने लगी - भीड़भाड़ की स्थिति में अपने लोगों के लिए अलग से व्यवस्था का इंतजाम करने लगे। आगे चलकर यही व्यवस्था वीआइपी दर्शन का आधार बनने लगी।
जो पैसा देकर दर्शन सुविधा लेता, उसे अलग कतार या मार्ग से दर्शन करवाए जाते हैं - आज के दौर में वीआइपी दर्शन में रसूख के साथ धनराशि भी शामिल हो गई है। जो दर्शनार्थी पैसा देकर दर्शन सुविधा लेता है, उसे अलग कतार या मार्ग से दर्शन करवाए जाते हैं।
अब भगवान के दरबार में भी दो तरह की व्यवस्था हो गई है - एक आम जनता के लिए और एक उन लोगों के लिए, जो आर्थिक रूप से सक्षम हों। एक आम आदमी जो घंटों लाइन में लगने के बाद मंदिर में प्रवेश करता है, तो उसे बाहर से ही दर्शन करने के लिए बाध्य किया जाता है, जैसे वह कोई अछूत हो।
बड़े आराम से मंदिर के गर्भगृह में दर्शन-लाभ करते हुए नजर आता - जो थोड़ा भी रसूखदार या वीआइपी है, वह बड़े आराम से मंदिर के गर्भगृह में दर्शन-लाभ करते हुए नजर आता है। एक आम आदमी इसी में खुश हो जाता है कि उसे कुछ ही सेकंड में मंदिर से बाहर निकाल दिया जाता है, लेकिन दूर से दर्शन तो हो गए।
समर्थकों का तर्क, मंदिरों को व्यावहारिक और वित्तीय लाभ होता है - वीआइपी संस्कृति या दर्शन के समर्थकों का तर्क है कि इससे मंदिरों को व्यावहारिक और वित्तीय लाभ होता है। दर्शन शुल्क से प्राप्त राशि मंदिर के रखरखाव, जीर्णोद्धार और विस्तार में योगदान देती है। इस राशि से कई सेवा कार्य भी किए जाते हैं।
नासूर बन गई व्यवस्था, बड़े पर्व-त्योहारों पर मंदिर की व्यवस्था बिगड़ती - अब वीआइपी दर्शन व्यवस्था नासूर-सी बन गई है। रसूखदारों के आगे नतमस्तक मंदिर प्रशासन अपने बनाए नियमों का पालन ही नहीं करवा पा रहा है। गड़बड़ी के बाद मातहतों पर कार्रवाई भी नहीं होती है। इसके चलते हर बार बड़े पर्व-त्योहारों पर मंदिर की व्यवस्था बिगड़ती है।
इसे ऐसा बनाना चाहिए, जिससे आम श्रद्धालु को परेशानी न हो - कहा जाता है कि ऊपर वाले के दरबार में न कोई बड़ा होता है, न कोई छोटा। बावजूद आज के दौर में मंदिरों में भेदभाव किया जा रहा है। इस व्यवस्था को पूरी तरह से खत्म तो नहीं किया जा सकता है, पर इसे ऐसा बनाना चाहिए, जिससे आम श्रद्धालु को परेशानी न हो।
वीआइपी धार्मिक पाप करता है, जिसे भगवान माफ नहीं करेंगे - मंदिर प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वीआइपी दर्शन के दौरान सार्वजनिक दर्शन किसी असुविधा के बिना हो। न्यायाधीश ने कहा था कि अगर कोई वीआइपी आम श्रद्धालु के लिए असुविधा पैदा करता है तो वह वीआइपी धार्मिक पाप करता है, जिसे भगवान द्वारा माफ नहीं किया जाएगा।

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