दान का दिखावा कभी नहीं करना चाहिए- राज रत्न जी महाराज, नूतन आराधना भवन में अमृत प्रवचन श्रृंखला प्रवाहित...
सामाजिक

अर्जुन जयसवाल नीमच
Updated : June 19, 2025 09:51 PM

नीमच। दान हमेशा गुप्त में करना चाहिए। दाएं हाथ से दान करें तो बाएं हाथ को भी पता नहीं चलना चाहिए। दान और स्नान गुप्त में करना चाहिए। प्राचीन ऋषि मुनियों एवं संतों ने जितने भी धर्मशाला भवन प्याऊ इत्यादि बनवाएं उसमें उन्होंने कहीं भी अपने नाम और दिखावे का उल्लेख नहीं किया है। इसलिए हमें भी दान का दिखावा कभी नहीं करना चाहिए। व्यक्ति को भाग्य से पुण्य धर्म का लाभ मिलता है वह पुण्यशाली होता है। प्राचीन काल में चक्रवर्ती भरत महाराज ने भी देवगुरु की कृपा से अनेक पुण्य परमार्थ के कार्य किए थे लेकिन उन्होंने नाम के प्रति रुचि नहीं दिखाई थी। यह बात मुनिराज राज रत्न जी महाराज ने कही। वे श्री जैन श्वेताम्बर भीड़ भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के तत्वाधान में पुस्तक बाजार स्थित नूतन आराधना भवन पर सुबह 9.15 बजे आयोजित अमृत प्रवचन श्रृंखला में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि धर्म तपस्या करना है तो शरीर से मोह कभी नहीं रखना चाहिए ।यह शरीर नाश्वान है। जिन शासन में जो आत्मा का व्यवहार बताया गया है विश्व के किसी भी दर्शन में इसका उल्लेख नहीं है। धर्म क्रिया का लक्ष्य हमें ज्ञात होना चाहिए। आदिनाथ का वर्षि तप हो गया था। तपस्या के मध्य हमें कभी कोई सुविधा या व्यवस्था नहीं मिले तो हमें प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद भी हमें धैर्य रखना चाहिए और हमें क्रोध नहीं करना चाहिए यही सच्ची तपस्या होती है। तपस्या में किसी सुविधा का हमें नहीं मिलना हमारे ही कर्म का फल होता है ।हम सामने वाले को दोष नहीं देवें। युवा वर्ग अधिक से अधिक धार्मिक तपस्या से जुड़े और अपने जीवन का कल्याण करें ।मन में शक्ति भाव हो तो लक्ष्य भी बड़ा होगा। तपस्या और आराधना भाग्य से होती है ।व्यापार में तो लोगों की रुचि होती है लेकिन धर्म में भी सक्रियता दिखानी चाहिए। तभी जीवन में आत्मा का कल्याण हो सकता है। तपस्या से पाप कर्म समाप्त हो जाते हैं अंतराय का विनाश हो जाता है। शरीर और मन पवित्र हो जाता है। प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में केवल ज्ञान का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए और अपने अभिमान का त्याग कर तपस्या से जुड़ना चाहिए। यदि हम धर्म नहीं कर पाए तो कोई बात नहीं लेकिन दूसरों को धर्म करने से कभी नहीं रोकना चाहिए। साधु साध्वी अपनी मर्यादा में सहज और सरल रहते हैं। श्रावक श्राविकाएं तपस्या के लिए बच्चों को प्रोत्साहन पुरस्कार प्रदान करें तो यह उनका अपना अलग सोच हो सकता है। वास्तव में तपस्या का कोई पुरस्कार नहीं होता है। तपस्या अपने आप में एक पुरस्कार होती है ।संगठन और समर्पण भाव संघ की आधारशिला होती है। राजस्थान के भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़ जिले के श्री संघ को उस क्षेत्र के सभी ग्रामीण मंदिरों के जीर्णोद्धार और विकास की जिम्मेदारी सौंपी गई है ठीक इसी प्रकार नीमच जिला मुख्यालय पर श्री संघ भी इस जिम्मेदारी को अपना कर्तव्य समझकर पूरा करें तो क्षेत्र के मंदिरों में विकास की गंगा बहेगी। साधु साध्वियों के विहार के लिए भी क्षेत्र के युवा वर्ग सजग और सक्रिय है। वहीं पार्श्वनाथ में उपधान तप की तपस्या में सभी युवा वर्ग रुचि लेकर सहभागी बने तो उनकी आत्मा का कल्याण हो सकता है। ज्ञानचंद चोरड़िया परिवार को धर्म लाभ मिला है वे साधुवाद के पात्र है।अमृत प्रवचन श्रृंखला का शुभारंभ गुरु वंदना से किया गया। इस अवसर पर श्री संघ पदाधिकारीयों एवं समाज जनों द्वारा आचार्य श्री से नीमच में चातुर्मास के लिए सामूहिक रूप से विनती की गई। धर्म सभा में आचार्य श्री निपुण रत्न सागर जी महाराज द्वारा सभी को मांगलिक श्रवण कराई गई सभी ने मांगलिक श्रवण का आशीर्वाद ग्रहण किया।