समाज के वंशोत्पत्ति महेश नवमी पर्व पर सभी को हार्दिक बधाई ढेरों शुभकामनाएं, माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां, हो सकता है इसमे कुछ त्रुटियां भी संभव है....
सामाजिक

निर्मल मूंदड़ा रतनगढ
Updated : June 04, 2025 07:30 AM

रतनगढ :- प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को 'महेश नवमी' का उत्सव मनाया जाता है।यह माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिवस है। अर्थात इसी दिन माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई थी।इसीलिए माहेश्वरी समाज इस दिन को माहेश्वरी समाज के स्थापना दिवस के रूप में मनाता है।ऐसी मान्यता है कि भगवान महेश और आदिशक्ति माता पार्वति ने ऋषियों के शाप के कारण पत्थरवत् बने हुए 72 क्षत्रिय उमराओं को युधिष्टिर संवत 9 जेष्ट शुक्ल नवमी के दिन शाप मुक्त कर पुनर्जीवन देते हुए कहा कि "आज से तुम्हारे वंश पर (धर्म पर) हमारी छाप रहेगी। तुम “माहेश्वरी’’ कहलाओगे", भगवान महेश के आशिर्वाद से पुनर्जीवन और नाम प्राप्त होने के कारण समाज ज्येष्ठ शुक्ल नवमी (महेश नवमी) को 'माहेश्वरी उत्पत्ति दिवस ' (स्थापना दिवस) के रूप में मनाता है। इसी दिन भगवान महेश और देवी महेश्वरी (माता पार्वती) की कृपा से माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई इसलिए इनको माहेश्वरी धर्म के संस्थापक मानकर माहेश्वरी समाज 'माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिन' के रुप में बहुत ही भव्य और धूमधाम से मनाया जाता है। महेश नवमी का यह पर्व मुख्य रूप से भगवान महेश (महादेव) और माता पार्वती की आराधना को समर्पित है।समाज के नेतृत्व ने समाज की संस्कृति की प्राचीनता,समाज के इतिहास का महत्व, उन्हें क्यों संजोकर रखा जाता है,इसको ना समझते हुए इसे कभी महत्व ही नहीं दिया।यह दुर्भाग्य ही है कि कभी समाज की विरासत, इतिहास, धरोहरों का कोई महत्व भी होता है। इस बात पर ध्यान नहीं दिया गया। इसीलिए आज माहेश्वरी समाज के पास अपनी विरासत, अपनी धरोहर, अपने इतिहास के बारे में बताने के लिए कुछ भी नहीं है।इसका मतलब यह नहीं है कि कुछ है ही नहीं बल्कि इसका मतलब यह है कि उनका संरक्षण- संवर्धन पर हमने ध्यान नहीं देते हुए अपनी जिम्मेदारी को नही निभाया गया।पीढ़ी दर पीढ़ी, परंपरागत रूप से माहेश्वरी समाज में महेश नवमी का पर्व बड़े ही श्रद्धा और आस्था से मनाया जा रहा है।लेकिन ज्यादातर बंधु नहीं जानते कि आज से कितने वर्ष पूर्व माहेश्वरी वंशोत्पत्ति हुई..? प्रतिवर्ष महेश नवमी तो मनाई जाती है।लेकिन हम कौन सी वी जयंती मना रहे हैं। इसका कोई उल्लेख होते दिखाई नहीं देता है।परिणामतःयह स्पष्ट नहीं हो पाता है।कि माहेश्वरी समाज की संस्कृति कितनी प्राचीन व कितने वर्षों का इतिहास है।
माहेश्वरी समाज की वंशोत्पत्ति कैसे हुई इसके बारे में जो कथा परंपरागत रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी प्रचलित है। उस कथा को (देखें Link > माहेश्वरी वंशोत्पत्ति एवं इतिहास) में आये स्थानों व पात्रों के नाम से,उनके कालखंड के माध्यम से,स्थानों की भौगोलिकता से भी माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के काल निर्धारण को जाना-समझा जा सकता है।
(1) माहेश्वरी वंशोत्पत्ति कथा में महर्षि पाराशर, ऋषि सारस्वत, ऋषि ग्वाला, ऋषि गौतम,ऋषि श्रृंगी, ऋषि दाधीच इन 6 ऋषियों और उनके नामों का उल्लेख मिलता है। जिन्हे भगवान महेश ने माहेश्वरी समाज का गुरु बनाया था। महाभारत के ग्रन्थ में भी इन ऋषियों का उल्लेख मिलता है। जैसे कि'महर्षि पाराशर ने महाराजा युधिष्ठिर को ‘शिव- महिमा’ के विषय में अपना अनुभव बताया' महाभारत तथा तत्कालीन ग्रंथों में कई जगहों पर पाराशर, भरद्वाज आदि ऋषियों का नामोल्लेख मिलता है।जिससे इस बात की पुष्टि होती है कि यह ऋषि (माहेश्वरी गुरु) महाभारत कालीन है,और इस सन्दर्भ से इस बात की भी पुष्टि होती है।कि माहेश्वरी समाज की वंशोत्पत्ति महाभारत काल में हुई है।
(2) माहेश्वरी वंशोत्पत्ति कथा में खण्डेलपुर राज्य का उल्लेख आता है। महाभारत काल में लगभग 260 जनपद (राज्य) होने का उल्लेख भारत के प्राचीन इतिहास में मिलता है। इनमें से जो बड़े और मुख्य जनपद थे इन्हे महा-जनपद कहा जाता था।कुरु,मत्स्य, गांधार आदि 16 महा-जनपदों का उल्लेख महाभारत में मिलता है।कि माहेश्वरी उत्पत्ति कथा में वर्णित 'खण्डेलपुर' जनपद भी इन जनपदों में से एक रहा होगा। राजस्थान के प्राचीन इतिहास की यह जानकारी कि- ‘खंडेला’ राजस्थान स्थित एक प्राचीन स्थान है।जो सीकर से 28 मील पर स्थित है।“खंडेला सातवीं शती ई.तक शैवमत (शिव अर्थात भगवान महेश को मानने वाले जनसमूह) का एक मुख्य केंद्र था”।यह जानकारी खण्डेलपुर और उसके महाभारत कालीन अस्तित्व और यंहा पर सातवीं शती तक शिव (महेश) को मानने वाला समाज अर्थात माहेश्वरी समाज के होने की भी पुष्टि करती है। इसी तरह से माहेश्वरी वंशोत्पत्ति कथा में आये (वर्णित) बातों के सन्दर्भ के आधार पर यह स्पष्ट होता है।कि माहेश्वरी वंशोत्पत्ति द्वापर युग के महाभारत काल में हुई है।
(3) माहेश्वरी समाज में माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के काल का श्लोक है-आसन मघासु मुनय: शासति युधिष्ठिरे नृपते l सूर्यस्थाने महेश कृपया जाता माहेश्वरी समुत्पत्तिः l
अर्थ-जब सप्तर्षि मघा नक्षत्र में थे,युधिष्ठिर राजा शासन करता था,सूर्य के स्थान पर अर्थात राजस्थान प्रान्त के लोहार्गल में (लोहार्गल-जहां सूर्य अपनी पत्नि छाया के साथ निवास करते है,माहेश्वरीयों का वंशोत्पत्ति स्थान है)।*भगवान महेश की कृपा (वरदान) से माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई।समाज में परंपरागत पीढ़ी दर पीढ़ी मान्यता के अनुसार समाज की वंशोत्पत्ति की जो तिथि संवत बताया है।-"युधिष्ठिर सम्वत 9,जेष्ठ शुक्ल नवमी"
आसन मघासु मुनय: मुनया (मुनि)अर्थात आकाश गंगा के सात तारे जिन्हे सप्तर्षि कहा जाता है।ब्रह्मांड में कुल 27 नक्षत्र हैं।सप्तर्षि प्रत्येक नक्षत्र में 100 वर्ष ठहरते हैं।इस तरह 2700 साल में सप्तर्षि एक चक्र पूरा करते हैं।माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के सम्बन्ध में कहा गया है। कि सप्तर्षि उस समय मेघा नक्षत्र में थे। द्वापर युग का उत्तर काल (जिसे महाभारत काल भी कहा जाता है।) में भी सप्तर्षि मेघा नक्षत्र में है।कि माहेश्वरी वंशोत्पत्ति द्वापर युग के उत्तर काल में अर्थात महाभारत काल में हुई है।श्लोक के 'शासति युधिष्ठिरे नृपते' इस पद (शब्द समूह) से इस बात की पुष्टि होती है।
युधिष्ठिर का इन्द्रप्रस्थ के राजा के रूप में राज्याभिषेक 17-12- 3139 ई.पू.के दिन हुआ, इसी दिन युधिष्ठिर संवत की घोषणा हुई।राज्यारौहण के पश्चात चैत्र शुक्ल एकम से 'युधिष्ठिर संवत' आरम्भ हुआ। यह उक्त मान्यता को पुष्ट करती है।कि भारत का सर्वाधिक प्राचीन युधिष्ठिर संवत की गणना कलयुग से 40 वर्ष पूर्व से की जाती है। युधिष्ठिर संवत जो 3142 ई.पू.से आरम्भ होता है।माहेश्वरी वंशोत्पत्ति संवत वर्ष है।- 'युधिष्ठिर संवत 9' अर्थात माहेश्वरी वंशोत्पत्ति ई.पू. 3133 में हुई है.(युगाब्द)में 31 जोड़ने से,वर्तमान विक्रम संवत अथवा ई.स.में (चैत्र शुक्ल वर्ष प्रतिपदा/गुड़ी पड़वा/भारतीय नव वर्षारम्भ) 3133 जोड़ने से माहेश्वरी वंशोत्पत्ति वर्ष आता है। वर्तमान में ई.स.2025 चल रहा है।वर्तमान ई.स. 2025 + 3133 = 5158 अर्थात माहेश्वरी समाज वंशोत्पत्ति आज से 5158 वर्ष पूर्व हुई है।अर्थात "महेश नवमी उत्सव 2025" को माहेश्वरी समाज अपना 5158 वा वंशोत्पत्ति दिवस मना रहा है।माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति जब हुई तब काल गणना के लिए युधिष्ठिर संवत प्रचलन में था। मान्यता के अनुसार माहेश्वरी वंशोत्पत्ति युधिष्ठिर संवत 9 में ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष के नवमी को हुई है।वर्तमान समय में देखा जा रहा है की माहेश्वरी समाज में युधिष्ठिर सम्वत के बजाय विक्रम या शक सम्वत का प्रयोग किया जा रहा है। इनके प्रयोग में हर्ज नहीं है। लेकिन इससे माहेश्वरी समाज की विशिष्ठता और प्राचीनता दृष्टिगत नहीं होती है। इसलिए माहेश्वरी समाज को अपनी पुरातन परंपरा को कायम रखते हुए "युधिष्ठिर संवत" का ही प्रयोग करना चाहिए।यह माहेश्वरी समाज की विशिष्ठ पहचान को दर्शाता है।विशिष्ठ पहचान और गौरव को बढ़ाने लिए समाज के समस्त संगठन और समाज बंधु सजग बनकर इसमें अपना योगदान दें।जय महेश !
माहेश्वरी समाज की वंशोत्पत्ति कैसे हुई इसके बारे में जो कथा परंपरागत रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी प्रचलित है। उस कथा को (देखें Link > माहेश्वरी वंशोत्पत्ति एवं इतिहास) में आये स्थानों व पात्रों के नाम से,उनके कालखंड के माध्यम से,स्थानों की भौगोलिकता से भी माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के काल निर्धारण को जाना-समझा जा सकता है।
(1) माहेश्वरी वंशोत्पत्ति कथा में महर्षि पाराशर, ऋषि सारस्वत, ऋषि ग्वाला, ऋषि गौतम,ऋषि श्रृंगी, ऋषि दाधीच इन 6 ऋषियों और उनके नामों का उल्लेख मिलता है। जिन्हे भगवान महेश ने माहेश्वरी समाज का गुरु बनाया था। महाभारत के ग्रन्थ में भी इन ऋषियों का उल्लेख मिलता है। जैसे कि'महर्षि पाराशर ने महाराजा युधिष्ठिर को ‘शिव- महिमा’ के विषय में अपना अनुभव बताया' महाभारत तथा तत्कालीन ग्रंथों में कई जगहों पर पाराशर, भरद्वाज आदि ऋषियों का नामोल्लेख मिलता है।जिससे इस बात की पुष्टि होती है कि यह ऋषि (माहेश्वरी गुरु) महाभारत कालीन है,और इस सन्दर्भ से इस बात की भी पुष्टि होती है।कि माहेश्वरी समाज की वंशोत्पत्ति महाभारत काल में हुई है।
(2) माहेश्वरी वंशोत्पत्ति कथा में खण्डेलपुर राज्य का उल्लेख आता है। महाभारत काल में लगभग 260 जनपद (राज्य) होने का उल्लेख भारत के प्राचीन इतिहास में मिलता है। इनमें से जो बड़े और मुख्य जनपद थे इन्हे महा-जनपद कहा जाता था।कुरु,मत्स्य, गांधार आदि 16 महा-जनपदों का उल्लेख महाभारत में मिलता है।कि माहेश्वरी उत्पत्ति कथा में वर्णित 'खण्डेलपुर' जनपद भी इन जनपदों में से एक रहा होगा। राजस्थान के प्राचीन इतिहास की यह जानकारी कि- ‘खंडेला’ राजस्थान स्थित एक प्राचीन स्थान है।जो सीकर से 28 मील पर स्थित है।“खंडेला सातवीं शती ई.तक शैवमत (शिव अर्थात भगवान महेश को मानने वाले जनसमूह) का एक मुख्य केंद्र था”।यह जानकारी खण्डेलपुर और उसके महाभारत कालीन अस्तित्व और यंहा पर सातवीं शती तक शिव (महेश) को मानने वाला समाज अर्थात माहेश्वरी समाज के होने की भी पुष्टि करती है। इसी तरह से माहेश्वरी वंशोत्पत्ति कथा में आये (वर्णित) बातों के सन्दर्भ के आधार पर यह स्पष्ट होता है।कि माहेश्वरी वंशोत्पत्ति द्वापर युग के महाभारत काल में हुई है।
(3) माहेश्वरी समाज में माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के काल का श्लोक है-आसन मघासु मुनय: शासति युधिष्ठिरे नृपते l सूर्यस्थाने महेश कृपया जाता माहेश्वरी समुत्पत्तिः l
अर्थ-जब सप्तर्षि मघा नक्षत्र में थे,युधिष्ठिर राजा शासन करता था,सूर्य के स्थान पर अर्थात राजस्थान प्रान्त के लोहार्गल में (लोहार्गल-जहां सूर्य अपनी पत्नि छाया के साथ निवास करते है,माहेश्वरीयों का वंशोत्पत्ति स्थान है)।*भगवान महेश की कृपा (वरदान) से माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई।समाज में परंपरागत पीढ़ी दर पीढ़ी मान्यता के अनुसार समाज की वंशोत्पत्ति की जो तिथि संवत बताया है।-"युधिष्ठिर सम्वत 9,जेष्ठ शुक्ल नवमी"
आसन मघासु मुनय: मुनया (मुनि)अर्थात आकाश गंगा के सात तारे जिन्हे सप्तर्षि कहा जाता है।ब्रह्मांड में कुल 27 नक्षत्र हैं।सप्तर्षि प्रत्येक नक्षत्र में 100 वर्ष ठहरते हैं।इस तरह 2700 साल में सप्तर्षि एक चक्र पूरा करते हैं।माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के सम्बन्ध में कहा गया है। कि सप्तर्षि उस समय मेघा नक्षत्र में थे। द्वापर युग का उत्तर काल (जिसे महाभारत काल भी कहा जाता है।) में भी सप्तर्षि मेघा नक्षत्र में है।कि माहेश्वरी वंशोत्पत्ति द्वापर युग के उत्तर काल में अर्थात महाभारत काल में हुई है।श्लोक के 'शासति युधिष्ठिरे नृपते' इस पद (शब्द समूह) से इस बात की पुष्टि होती है।
युधिष्ठिर का इन्द्रप्रस्थ के राजा के रूप में राज्याभिषेक 17-12- 3139 ई.पू.के दिन हुआ, इसी दिन युधिष्ठिर संवत की घोषणा हुई।राज्यारौहण के पश्चात चैत्र शुक्ल एकम से 'युधिष्ठिर संवत' आरम्भ हुआ। यह उक्त मान्यता को पुष्ट करती है।कि भारत का सर्वाधिक प्राचीन युधिष्ठिर संवत की गणना कलयुग से 40 वर्ष पूर्व से की जाती है। युधिष्ठिर संवत जो 3142 ई.पू.से आरम्भ होता है।माहेश्वरी वंशोत्पत्ति संवत वर्ष है।- 'युधिष्ठिर संवत 9' अर्थात माहेश्वरी वंशोत्पत्ति ई.पू. 3133 में हुई है.(युगाब्द)में 31 जोड़ने से,वर्तमान विक्रम संवत अथवा ई.स.में (चैत्र शुक्ल वर्ष प्रतिपदा/गुड़ी पड़वा/भारतीय नव वर्षारम्भ) 3133 जोड़ने से माहेश्वरी वंशोत्पत्ति वर्ष आता है। वर्तमान में ई.स.2025 चल रहा है।वर्तमान ई.स. 2025 + 3133 = 5158 अर्थात माहेश्वरी समाज वंशोत्पत्ति आज से 5158 वर्ष पूर्व हुई है।अर्थात "महेश नवमी उत्सव 2025" को माहेश्वरी समाज अपना 5158 वा वंशोत्पत्ति दिवस मना रहा है।माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति जब हुई तब काल गणना के लिए युधिष्ठिर संवत प्रचलन में था। मान्यता के अनुसार माहेश्वरी वंशोत्पत्ति युधिष्ठिर संवत 9 में ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष के नवमी को हुई है।वर्तमान समय में देखा जा रहा है की माहेश्वरी समाज में युधिष्ठिर सम्वत के बजाय विक्रम या शक सम्वत का प्रयोग किया जा रहा है। इनके प्रयोग में हर्ज नहीं है। लेकिन इससे माहेश्वरी समाज की विशिष्ठता और प्राचीनता दृष्टिगत नहीं होती है। इसलिए माहेश्वरी समाज को अपनी पुरातन परंपरा को कायम रखते हुए "युधिष्ठिर संवत" का ही प्रयोग करना चाहिए।यह माहेश्वरी समाज की विशिष्ठ पहचान को दर्शाता है।विशिष्ठ पहचान और गौरव को बढ़ाने लिए समाज के समस्त संगठन और समाज बंधु सजग बनकर इसमें अपना योगदान दें।जय महेश !