संस्थागत प्रशिक्षण में अजोला उत्पादन करने का तरीका समझाया....
कृषि

बंशीलाल धाकड़ राजपुरा
Updated : May 15, 2025 10:38 PM

चित्तौड़गढ़ :- कृषि विज्ञान केन्द्र, द्वारा संस्थागत प्रशिक्षण में अजोला उत्पादन करने का तरीका एवं पशुओ को खिलाने का महत्व पर प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। डॉ. रतन लाल सोलंकी, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष ने बताया कि अजोला पशुओ का पूरक आहार है, इसे हरे चारे की एव दाने की बचत होती है। अजोला को खिलाने से पूर्व 1 सेमी बड़े साइज के छेद किये हुये ट्रे (छलनी) में एकत्र करना चाहिये ताकि पूरा पानी झड़ जाये। ट्रे को एक बाल्टी के ऊपर रखकर पानी से अच्छे से धोना चाहिये ताकि पानी व गोबर की गंध निकल जाये। बाल्टी में एकत्रित पानी को पुनः गड्ढे में डाल देना चाहिये। अजोला को पशु आहार के साथ मिलाकर पशु को खिलाना चाहिये। इसे उत्तम पौष्टिक आहार के रुप में विकसित किया जा सकता है। ग्राम में घर या बाड़ी में किसी भी स्थान में अजोला का उत्पादन किया जा सकता है। अजोला खिलाने से पशुओं का स्वास्थ्य एवं दुग्ध उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ पशु के शारीरिक विकास एवं बांझपन निवारण में सहायक होती है। दुधारू पशुओं को उनके दैनिक आहार के साथ डेढ़ से दो किलोग्राम अजोला प्रतिदिन की दर से दिया जाता है तो दुग्ध उत्पादन में 15 प्रतिशत की वृद्धि होती है। श्री संजय कुमार धाकड़, तकनीकी सहायक ने कहा कि अजोला पशुओं के लिए सदाबहार पौष्टिक आहार प्रदान करने की क्षमताएँ विद्यमान है। अजोला जल की सतह पर तैरने वाला एक फर्न है। इस नीलहरित शैवाल को (एनाबिना अजोली) के नाम से जाना जाता है। यह अद्वितीय पारस्परिक सहजैविक संबंध अजोला को एक अद्भुद पौधे के रूप में विकसित करता है, जिसमें कि उच्च मात्रा में प्रोटीन उपलब्ध होता है। अन्त में प्रशिक्षणार्थियों को अजोला इकाई का भ्रमण कराकर अजोला तैयार करने की प्रायोगिक जानकारी दी।